जहाँ आज भी सुबह घड़ी या मोबाईल के अलार्म से नहीं सूरज की किरणों के साथ होता है वो गाँव है गाँव ने अपनी शक्ल बदल ली है ना वो खपरैल के कच्चे मिट्टी से बने घर बचे है ना भावनाओं की मधुर की आँच में पके वो आत्मीयतापूर्ण रिशतें कुछ भी हो गाँव में अब भी शाम की हवा का असर जादुई है एक अनोखी दुनिया मेरे गाँव की। इस दुनिया को तो हम भूल ही चुके हैं। लिखें अपने गाँव के बारे में। #गाँवकीबातें