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जन्म के पल मनुष्य के जीवन के सर्वश्रेष्ठ पल होते ह

जन्म के पल मनुष्य के जीवन के सर्वश्रेष्ठ पल होते हैं सभी को उत्सुकता से उसके आने की प्रतीक्षा होती है उसके जन्म लेने पर सभी को हर्ष होता है उसके जन्म से पूर्व ही उसके भविष्य को लेकर कई सुनहरे सपने देखे जाते हैं वह जैसे-जैसे बड़ा होता है जीवन की कठोर वास्तविकता जुड़ती जाती है आशाएं घटती जाती है आशीवाद सुख का सबसे बड़ा शोत्र है जीवन में आशा ललित होती है तो मनुष्य का मन स्वयं भी प्रफुल्लित रहता है उसकी क्षमता बढ़ती जाती है आशाओं से रहित मनुष्य कभी कार्य करता है किंतु उनमें प्रफुल्ला और रूचि का अभाव होता है कार्य एक विवशता और कर्तव्य बन जाता है ऐसे कार्य से भले ही धन अर्जित कर लिया जाए पद प्रतिष्ठा प्राप्त हो जाए किंतु आलस से नहीं उत्पन्न होता आशाओं का संबंध अंतर्मन से है आशा है जब पूरी तरह होती है मन को संतुष्ट संतृप्त करती हैं जबकि धन्यवाद शक्ति का अर्जन कामनाओं को उत्प्रेरित करता है और स्वयं बढ़ाता है मन को संतृप्त करने वाली आशाएं वास्तव में क्या है मन तब प्रफुल्ल होता है जब वह स्थिर हो जाए संतुष्ट हो जाए ऐसा संजय से ही अर्पण से होता है लेना एक से अधिक मनुष्य का चरित्र है जबकि देना ईश्वरीय तत्व है केवल ईश्वर ही है जो दे रहा है युगो युगो से दे रहा है लेकिन पाने की आशा नहीं कम हो रही देना कर्म नहीं है आत्म संतुष्टि की आशा है जब मनुष्य आत्म संतुष्टि की आशा के साथ जीता है तो दया क्षमा उदारता परोपकार संयम और सहजता जैसे गुण स्वयं ही विकसित होने लगते हैं किसी कार्य से मनुष्य को आत्म संतुष्टि मिल रही है यह उसे स्वयं ही समझना और तय करना होता है वह जीवन में जो भी कार्य करें इस विश्वास से ही करें कि यह उसे आत्मिक संतृप्त प्रदान करने वाला है जब यह भावना कार्य और जीवन का मुख्य उद्देश्य बन जाती है तो जीवन बदल जाता है मनुष्य हर भला करे उसे नया जीवन देने वाला सिद्ध होता है वह अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा के साथ ही सुख का सूत्र बन जाता है

©Ek villain # जीवन के स्वागतम फल

#beinghuman
जन्म के पल मनुष्य के जीवन के सर्वश्रेष्ठ पल होते हैं सभी को उत्सुकता से उसके आने की प्रतीक्षा होती है उसके जन्म लेने पर सभी को हर्ष होता है उसके जन्म से पूर्व ही उसके भविष्य को लेकर कई सुनहरे सपने देखे जाते हैं वह जैसे-जैसे बड़ा होता है जीवन की कठोर वास्तविकता जुड़ती जाती है आशाएं घटती जाती है आशीवाद सुख का सबसे बड़ा शोत्र है जीवन में आशा ललित होती है तो मनुष्य का मन स्वयं भी प्रफुल्लित रहता है उसकी क्षमता बढ़ती जाती है आशाओं से रहित मनुष्य कभी कार्य करता है किंतु उनमें प्रफुल्ला और रूचि का अभाव होता है कार्य एक विवशता और कर्तव्य बन जाता है ऐसे कार्य से भले ही धन अर्जित कर लिया जाए पद प्रतिष्ठा प्राप्त हो जाए किंतु आलस से नहीं उत्पन्न होता आशाओं का संबंध अंतर्मन से है आशा है जब पूरी तरह होती है मन को संतुष्ट संतृप्त करती हैं जबकि धन्यवाद शक्ति का अर्जन कामनाओं को उत्प्रेरित करता है और स्वयं बढ़ाता है मन को संतृप्त करने वाली आशाएं वास्तव में क्या है मन तब प्रफुल्ल होता है जब वह स्थिर हो जाए संतुष्ट हो जाए ऐसा संजय से ही अर्पण से होता है लेना एक से अधिक मनुष्य का चरित्र है जबकि देना ईश्वरीय तत्व है केवल ईश्वर ही है जो दे रहा है युगो युगो से दे रहा है लेकिन पाने की आशा नहीं कम हो रही देना कर्म नहीं है आत्म संतुष्टि की आशा है जब मनुष्य आत्म संतुष्टि की आशा के साथ जीता है तो दया क्षमा उदारता परोपकार संयम और सहजता जैसे गुण स्वयं ही विकसित होने लगते हैं किसी कार्य से मनुष्य को आत्म संतुष्टि मिल रही है यह उसे स्वयं ही समझना और तय करना होता है वह जीवन में जो भी कार्य करें इस विश्वास से ही करें कि यह उसे आत्मिक संतृप्त प्रदान करने वाला है जब यह भावना कार्य और जीवन का मुख्य उद्देश्य बन जाती है तो जीवन बदल जाता है मनुष्य हर भला करे उसे नया जीवन देने वाला सिद्ध होता है वह अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा के साथ ही सुख का सूत्र बन जाता है

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