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पहले एक हथिनी,फिर गाय को बारुद खिला रहे हो, इंसानि

पहले एक हथिनी,फिर गाय को बारुद खिला रहे हो,
इंसानियत को मार कर क्या से क्या बनते जा रहे हो?
जहां आदर है पत्थरों में उकेरी आकृतियों का भी,
वहां जिंदा जीवों मारते ही जा रहे हो।
क्या हासिल कर लोगे इतना विस्फोटक जमा कर के?
इक दिन खुद ही जल जाओगे धूं-धूं कर के।
न दया,न धर्म,न ही करुणा का अंश बचा है,
ईश्वर भी शर्मिंदा हैं कि मानव के वेश में दानव रचा है।
यूं जो शव के सौदागर बन मृत्यु बेचते जा रहे हो,
यकीं मानों अपने ही ताबूत में कील ठोकते जा रहे हो।
प्रलय के ढेर बैठ कर मानवता को मारते जा रहे हो,
तुम अपने ही भविष्य की कब्र खोदते जा रहे हो।
ये कैसा विकास हुआ है मानव में,
जो पूर्ण परिवर्तित हो गया दानव में.... पहले एक हथिनी,फिर गाय को बारुद खिला रहे हो,
इंसानियत को मार कर क्या से क्या बनते जा रहे हो?
जहां आदर है पत्थरों में उकेरी आकृतियों का भी,
वहां जिंदा जीवों मारते ही जा रहे हो।
क्या हासिल कर लोगे इतना विस्फोटक जमा कर के?
इक दिन खुद ही जल जाओगे धूं-धूं कर के।
न दया,न धर्म,न ही करुणा का अंश बचा है,
ईश्वर भी शर्मिंदा हैं कि मानव के वेश में दानव रचा है।
पहले एक हथिनी,फिर गाय को बारुद खिला रहे हो,
इंसानियत को मार कर क्या से क्या बनते जा रहे हो?
जहां आदर है पत्थरों में उकेरी आकृतियों का भी,
वहां जिंदा जीवों मारते ही जा रहे हो।
क्या हासिल कर लोगे इतना विस्फोटक जमा कर के?
इक दिन खुद ही जल जाओगे धूं-धूं कर के।
न दया,न धर्म,न ही करुणा का अंश बचा है,
ईश्वर भी शर्मिंदा हैं कि मानव के वेश में दानव रचा है।
यूं जो शव के सौदागर बन मृत्यु बेचते जा रहे हो,
यकीं मानों अपने ही ताबूत में कील ठोकते जा रहे हो।
प्रलय के ढेर बैठ कर मानवता को मारते जा रहे हो,
तुम अपने ही भविष्य की कब्र खोदते जा रहे हो।
ये कैसा विकास हुआ है मानव में,
जो पूर्ण परिवर्तित हो गया दानव में.... पहले एक हथिनी,फिर गाय को बारुद खिला रहे हो,
इंसानियत को मार कर क्या से क्या बनते जा रहे हो?
जहां आदर है पत्थरों में उकेरी आकृतियों का भी,
वहां जिंदा जीवों मारते ही जा रहे हो।
क्या हासिल कर लोगे इतना विस्फोटक जमा कर के?
इक दिन खुद ही जल जाओगे धूं-धूं कर के।
न दया,न धर्म,न ही करुणा का अंश बचा है,
ईश्वर भी शर्मिंदा हैं कि मानव के वेश में दानव रचा है।