बेखौफ फ़िरु मैं अब उन गलियों में , बेफ़िक्र चलूँ अब उन सुनसान राहों मैं, जहां कभी तेरा हाथ था मेरी बाहों में, ज़िन्दगी में सब कुछ था सिर्फ तेरे खुश होने में, लगता था डर हर वक़्त तुझसे जुदा होने में, तूने जब जो ये खेल मेरे साथ था खेला, कुछ ना बचा मेरे पास रह गया बिल्कुल अकेला, अब और किससे करता मैं उस वफा की आस, मेरे अन्दर तक कुछ नहीं बचा था मेरा मेरे पास, तब सोचा मैंने अब ना लूंगा किसी का सहारा, अब फिरता हूँ बेखौफ बेफ़िक्र उन गलियों में आवारा।। #post164 #बेखौफ