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झांकूं उस माधवी-कुंज में, जो बन रहा स्वर्ग कानन मे

झांकूं उस माधवी-कुंज में, जो बन रहा स्वर्ग कानन में;
प्रथम परस की जहाँ लालिमा सिहर रही तरुणी- आनन में ।

जनारण्य से दूर स्वप्न में मैं भी निज संसार बसाऊँ,
जग का आर्त्त नाद सुन अपना हृदय फाड़ने से बच जाऊँ ।

मिट जाती ज्यों किरण बिहँस सारा दिन कर लहरों पर झिल--मिल,
खो जाऊँ त्यों हर्ष मनाता, मैं भी निज स्वानों से हिलमिल ।

पर, नभ में न कुटी बन पाती, मैंने कितनी युक्ति लगायी,
आधी मिटती कभी कल्पना, कभी उजड़ती बनी-बनायी ।

रह-रह पंखहीन खग-सा मैं गिर पड़ता भू की हलचल में ;
झटिका एक बहा ले जाती स्वप्न-राज्य आँसू के जल में ।

कुपित देव की शाप-शिखा जब विद्युत् बन सिर पर छा जाती,
उठता चीख हृदय विद्रोही, अन्ध भावनाएँ जल जातीं ।

part 3 #allalone  Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat gyaneshwar dhritlahare  Vishakha Sharma
झांकूं उस माधवी-कुंज में, जो बन रहा स्वर्ग कानन में;
प्रथम परस की जहाँ लालिमा सिहर रही तरुणी- आनन में ।

जनारण्य से दूर स्वप्न में मैं भी निज संसार बसाऊँ,
जग का आर्त्त नाद सुन अपना हृदय फाड़ने से बच जाऊँ ।

मिट जाती ज्यों किरण बिहँस सारा दिन कर लहरों पर झिल--मिल,
खो जाऊँ त्यों हर्ष मनाता, मैं भी निज स्वानों से हिलमिल ।

पर, नभ में न कुटी बन पाती, मैंने कितनी युक्ति लगायी,
आधी मिटती कभी कल्पना, कभी उजड़ती बनी-बनायी ।

रह-रह पंखहीन खग-सा मैं गिर पड़ता भू की हलचल में ;
झटिका एक बहा ले जाती स्वप्न-राज्य आँसू के जल में ।

कुपित देव की शाप-शिखा जब विद्युत् बन सिर पर छा जाती,
उठता चीख हृदय विद्रोही, अन्ध भावनाएँ जल जातीं ।

part 3 #allalone  Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat gyaneshwar dhritlahare  Vishakha Sharma