उम्मीदें अब तो जाना तय है,लगभग,मन कह रहा। हाँ फिर से मिलेंगे,हम यहीं , वादा रहा ।। हँसना भी चाहा, मगर ना हँस सका, जिंदगी मे दर्द-गम ज्यादा रहा ।। फिर सजेगी जिंदगी जब-लौट कर आऊँगा मैं , वो सफर होगा सुहाना,हाँ ,यह सफर सादा रहा ।। मन को समझाया बहुत, हाँ, ठीक है सबकुछ कहा, मैं बन ना पाया बादशाह, अफसोस! एक प्यादा रहा ।। स्वप्न थे सुंदर बहुत, देखे जो मैंने चाव से , कुछ तो पूरे हो गए, एक खास था,आधा रहा।। पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj #Leave उम्मीदें वापसी की