बंधुआ मजदूर - कल, आज और कल.... ज़मींदारों के दौर में दीन थे बंधुआ मजदूर, अब फिर चल पड़ेगी प्रथा ए बंधुआ मजदूर ! श्रम कानूनों को किया ही जा रहा है शिथिल, मजदूर हकों पे चली गदा, राजनीत को है मंजूर !! रोजी-रोटी छीन कर भुखमरी में ढकेल रहे देश, मुफ्त अनाज बांटने से स्पष्ट हो रहा यही संदेश ! समृद्धि की सारी मलाई राजनीति के आगोश में, रहमोकरम पर जीने को मजबूर है अपना देश !! पत्रकारिता बाजारीकरण का शिकार हो चुकी, सच्ची कलम अक्सर, सलाखों तक में जा सिमटी ! निडर बुद्धिजीवियों पर गोलियों की होती बौछार, जान से हाथ धो बैठता जो भी काटे इनको चिमटी !! हक के लिये लड़ना, भुखमरी भुला देती है, बढ़ती आर्थिक विषमता, यही सिला देती है ! औद्योगिक घरानों का है महाराजाओं सा रूप, आसान अतिदौलत लोभ लालच बढ़ा देती है !! आसानी से इन समस्याओं का न निकलेगा हल, कलम को साफ़ दिख रहा, गर्दिश में आने वाला कल ! ज़ुल्म इस कदर हावी, आसान नहीं हालात जाये संभल, एकजुटता से हर मोर्चे पे पैदा करनी होगी हलचल !! - आवेश हिंदुस्तानी 27.05.2023 ©Ashok Mangal #IndianRepublic #labour #AaveshVaani #JanMannKiBaat