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दुनिया से निराला,.... मन का मतवाला .... मिलता कह

दुनिया से निराला,....
 मन का मतवाला ....

मिलता कहाँ बाँसुरी वाला.....
दूध में बेचता पानी अब ग्वाला....

गन्दगीं है फैली बैठे कहाँ जमुना के किनारे.....
फूल अब गमलों में लहक रहें फूलों का सुगंध है किधर....

घनघोर घटाएँ भी जल रही फैक्ट्रीयों के धुंआ से....
ज़हर घुल कर बहती सरमस्त हवाओं से ....

मोबाइल कम्प्यूटर में कैद मासूम उमंगें.....
दरिया भी रूठी रूठी कैसी उल्फ़त की तरंगें.....

अब मिलती बगीचे के झाड़ीओ में गोपियाँ .....
 अब हाथों में मिलते नहीं हाथ हद्दे लेती रहती अंगड़ाइयां .....

पर्दा न जाने कब हो जाये ताराज.....
न जाने कब किसी गलियारे में बेकस की लूट जाए लाज....

अब काले घूम रहे
 डट कर उजाले में करते चमचम काले....
उजाले बने दागदार  अंधेरे से कहता दामन में छुपा ले....

परियाँ अब आती नहीं धरा पर ...
हवाओं में आती नहीं शीतलता धरा पर ....

हर वेश्या कहती
 खुद को राधा यहां.….
हर हवस का भूखा कहता खुद को श्याम यहां.....

बलशाली है अब राम यहां....
रषिक कहता खुद को अब कन्हैय्या यहां .....

त्राहिमाम त्राहिमाम करता वीरों का देश ....
भेड़ियाँ है चारो तरफ घूम रहें आबो हँवा परेशाँ.....

प्रेम का किनारा...
सुनसान है सारा...
 आबरू हैं ख़ामोश.…
मौजों में नहीं जोश...
अब घरों में जलते नहीं प्रेमक दिए ....
अब फटी आबरू से जलती है मोमबत्तियां....

हे विराट रूपी , हो काल गति से परे ....
 तुम भी नियति में बंधे ....
यहाँ वहां थे 
कभी सर्वत्र थे....

कभी तुम्हें धरा  पूजा ....
कभी तुम धरा पूजे.....

कभी तुममे गगन
 कभी गगन में तुम ,

कभी माया ने तुम्हें भी छला ....
कभी माया को  छले तुम....

लीला पर लीला रचते रहे ,
अधर्म का सदा विनाश करते रहें....

 अब कहाँ हो ...
कहाँ विलुप्त हो....

 अधर्म से व्याकुल धरा का कण कण हो रहा...
अब तो नन्ही सीता या राधा और रुक्मिणी भी द्रोपदी सी चौसर पर बिछ रही ...
कौन रक्षक कौन भक्षक कौन अपना कौन पराया विश्वास का चिथड़ा उड़ रहा ...

 तुम सकल चराचर में हो समाये,
व्यथित भाग्य का आओ बनो सारथी फिर से...

अब घर घर में मिल रहे मोह और लोभ में जकड़ा धृतराष्ट्र.....
हर के नियत मे बसता दुर्योधन और दुषशाशन का चरित्र....

आज का शकुनि अब लँगड़ा भी नही रहा ....
हर चौराहे पर पसार रखा पाशा और लोग बिक यहां रहे ....

असुरता अधर्मता है लगा रहा ठहाके पे ठहाके यहां...
पाप आजकल डिस्को पे है नाच रहे यहां....

बोलो श्रीकृष्ण  मुरारी मोहन प्यारे कन्हैया की कब आओगे ... कब आओगे ...
🤔निशीथ🤔
🙏🏻
#शुभ_जन्माष्टमी 🙏🏻

©Nisheeth pandey दुनिया से निराला,....
 मन का मतवाला ....

मिलता कहाँ बाँसुरी वाला.....
दूध में बेचता पानी अब ग्वाला....

गन्दगीं है फैली बैठे कहाँ जमुना के किनारे.....
फूल अब गमलों में लहक रहें फूलों का सुगंध है किधर....
दुनिया से निराला,....
 मन का मतवाला ....

मिलता कहाँ बाँसुरी वाला.....
दूध में बेचता पानी अब ग्वाला....

गन्दगीं है फैली बैठे कहाँ जमुना के किनारे.....
फूल अब गमलों में लहक रहें फूलों का सुगंध है किधर....

घनघोर घटाएँ भी जल रही फैक्ट्रीयों के धुंआ से....
ज़हर घुल कर बहती सरमस्त हवाओं से ....

मोबाइल कम्प्यूटर में कैद मासूम उमंगें.....
दरिया भी रूठी रूठी कैसी उल्फ़त की तरंगें.....

अब मिलती बगीचे के झाड़ीओ में गोपियाँ .....
 अब हाथों में मिलते नहीं हाथ हद्दे लेती रहती अंगड़ाइयां .....

पर्दा न जाने कब हो जाये ताराज.....
न जाने कब किसी गलियारे में बेकस की लूट जाए लाज....

अब काले घूम रहे
 डट कर उजाले में करते चमचम काले....
उजाले बने दागदार  अंधेरे से कहता दामन में छुपा ले....

परियाँ अब आती नहीं धरा पर ...
हवाओं में आती नहीं शीतलता धरा पर ....

हर वेश्या कहती
 खुद को राधा यहां.….
हर हवस का भूखा कहता खुद को श्याम यहां.....

बलशाली है अब राम यहां....
रषिक कहता खुद को अब कन्हैय्या यहां .....

त्राहिमाम त्राहिमाम करता वीरों का देश ....
भेड़ियाँ है चारो तरफ घूम रहें आबो हँवा परेशाँ.....

प्रेम का किनारा...
सुनसान है सारा...
 आबरू हैं ख़ामोश.…
मौजों में नहीं जोश...
अब घरों में जलते नहीं प्रेमक दिए ....
अब फटी आबरू से जलती है मोमबत्तियां....

हे विराट रूपी , हो काल गति से परे ....
 तुम भी नियति में बंधे ....
यहाँ वहां थे 
कभी सर्वत्र थे....

कभी तुम्हें धरा  पूजा ....
कभी तुम धरा पूजे.....

कभी तुममे गगन
 कभी गगन में तुम ,

कभी माया ने तुम्हें भी छला ....
कभी माया को  छले तुम....

लीला पर लीला रचते रहे ,
अधर्म का सदा विनाश करते रहें....

 अब कहाँ हो ...
कहाँ विलुप्त हो....

 अधर्म से व्याकुल धरा का कण कण हो रहा...
अब तो नन्ही सीता या राधा और रुक्मिणी भी द्रोपदी सी चौसर पर बिछ रही ...
कौन रक्षक कौन भक्षक कौन अपना कौन पराया विश्वास का चिथड़ा उड़ रहा ...

 तुम सकल चराचर में हो समाये,
व्यथित भाग्य का आओ बनो सारथी फिर से...

अब घर घर में मिल रहे मोह और लोभ में जकड़ा धृतराष्ट्र.....
हर के नियत मे बसता दुर्योधन और दुषशाशन का चरित्र....

आज का शकुनि अब लँगड़ा भी नही रहा ....
हर चौराहे पर पसार रखा पाशा और लोग बिक यहां रहे ....

असुरता अधर्मता है लगा रहा ठहाके पे ठहाके यहां...
पाप आजकल डिस्को पे है नाच रहे यहां....

बोलो श्रीकृष्ण  मुरारी मोहन प्यारे कन्हैया की कब आओगे ... कब आओगे ...
🤔निशीथ🤔
🙏🏻
#शुभ_जन्माष्टमी 🙏🏻

©Nisheeth pandey दुनिया से निराला,....
 मन का मतवाला ....

मिलता कहाँ बाँसुरी वाला.....
दूध में बेचता पानी अब ग्वाला....

गन्दगीं है फैली बैठे कहाँ जमुना के किनारे.....
फूल अब गमलों में लहक रहें फूलों का सुगंध है किधर....