खुदगर्ज नहीं हैं हम हम खुद से, ना दिल से हम बेदर्दी हैं.. ये रेल की नौकरी जो मेरी ... हालत अइसे ही कर दी है.. साथ में मिलके रंग होली के.. खेले यही मेरी मर्जी है.. पर सर पे रेल की बर्दी है... सरकार की दहशतगर्दी है -2 रंगो की पिचकारी भर के जब फ़ाग सभी मनाते हैं.. सब रंगो की मस्ती में डूबे हम ड्यूटी में दिल बहलाते हैं.. गैरों के बिच में अपने ढूंढते. सभी को मंजिल तक पहुंचाते . पर अपनी छुटी के लिए.. हर होली में मायूशी हीं पाते... कभी होली घर पर मनाऊँ.. ये सोच के दिल तरसती है.. पर सर पे रेल की वर्दी है... सरकार की दहशतगर्दी है -2 सरकारी बाबू को तो हर बार मलाई मिलती है. हर बार की होली में घर में ही गुल खिलती है. आंशू भी न बहते उनके. न अफ़सोस भी होती है.. न ही उनके बीबी बच्चे.. अकेले में कभी सिसकती है... मेरी तो गर्मी में भी . मौसम लगती है सर्दी है. पर सर पे रेल की वर्दी है... सरकार की दहशतगर्दी है -2 :- संतोष 'साग़र' खुदगर्ज नहीं हैं हम हम खुद से, ना दिल से हम बेदर्दी हैं.. ये रेल की नौकरी जो मेरी ... हालत अइसे ही कर दी है.. साथ में मिलके रंग होली के.. खेले यही मेरी मर्जी है.. पर सर पे रेल की बर्दी है... सरकार की दहशतगर्दी है -2