मैंने चाहा बहुत, गीत गाऊँ मगर, तुमने वीणा के तारों को छेड़ा नहीं, तुमने आने का मन ही बनाया नहीं, रास्ता वरना घर का था टेढ़ा नहीं। तुम तो सौभाग्यशाली रही हो सदा, भाग्य अपना बना है करण की तरह। rajendra