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अनन्त अश्रुधारा को, आँखों में बसा हूँ सकता मैं, अख

अनन्त अश्रुधारा को,
आँखों में बसा हूँ सकता मैं,
अखण्ड अमृत शब्दों को,
कंठो में छुपा हूँ सकता मैं,
बस राजनीत की जूठी नदियाँ में,
अब और नही बह सकता मैं,
अपमान नही सह सकता मैं,
 अपमान नही सह सकता मैं ।
                                           धरा जो धर्म की हो तो,
                                             गरल सा गुस्सा पी सकता मैं,
                                             फ़िज़ा जो फ़र्ज़ की हो तो,
                                              तरल सा ततपर जी सकता मैं,
                                           मृत हुआ जो ज़मीर ये तेरा,
                                           जीवित नही कह सकता मैं,
                                            अपमान नही सह सकता मैं,
                                             अपमान नही सह सकता मैं ।
                                                                                               -दिव्यांश जोशी #Apmaan
अनन्त अश्रुधारा को,
आँखों में बसा हूँ सकता मैं,
अखण्ड अमृत शब्दों को,
कंठो में छुपा हूँ सकता मैं,
बस राजनीत की जूठी नदियाँ में,
अब और नही बह सकता मैं,
अपमान नही सह सकता मैं,
 अपमान नही सह सकता मैं ।
                                           धरा जो धर्म की हो तो,
                                             गरल सा गुस्सा पी सकता मैं,
                                             फ़िज़ा जो फ़र्ज़ की हो तो,
                                              तरल सा ततपर जी सकता मैं,
                                           मृत हुआ जो ज़मीर ये तेरा,
                                           जीवित नही कह सकता मैं,
                                            अपमान नही सह सकता मैं,
                                             अपमान नही सह सकता मैं ।
                                                                                               -दिव्यांश जोशी #Apmaan