पर्वत कहता शीश उठाकर, तुम भी ऊँचे बन जाओ। सागर कहता लहराकर, मन में गहराई लाओ। समझ रहे हो क्या कहती है, उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग। भर लो भर लो अपने मन में, मीठी-मीठी मृदुल उमंग। पृथ्वी कहती धैर्य ने छोड़ो, कितना ही हो सर पर भार। नभ कहता फैलो इतना, कि ढक लो सारा संसार! #प्रकृति का सन्देश#