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पर्वत कहता शीश उठाकर,

पर्वत कहता शीश उठाकर,                                  तुम भी ऊँचे बन जाओ।                                     सागर कहता लहराकर,                                        मन में गहराई लाओ।                                                                                                     समझ रहे हो क्या कहती है,                                उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग।                                भर लो भर लो अपने मन में,                             मीठी-मीठी मृदुल उमंग।                                    पृथ्वी कहती धैर्य ने छोड़ो,                               कितना ही हो सर पर भार।                                  नभ कहता फैलो इतना,                                        कि ढक लो सारा संसार! #प्रकृति का सन्देश#
पर्वत कहता शीश उठाकर,                                  तुम भी ऊँचे बन जाओ।                                     सागर कहता लहराकर,                                        मन में गहराई लाओ।                                                                                                     समझ रहे हो क्या कहती है,                                उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग।                                भर लो भर लो अपने मन में,                             मीठी-मीठी मृदुल उमंग।                                    पृथ्वी कहती धैर्य ने छोड़ो,                               कितना ही हो सर पर भार।                                  नभ कहता फैलो इतना,                                        कि ढक लो सारा संसार! #प्रकृति का सन्देश#
arvindkumar3832

Arvind kumar

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