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ख्वाईशों के बाजार में, घूम रहा हूं, मैं,लाचारी के

ख्वाईशों के बाजार में, घूम रहा हूं,
मैं,लाचारी के नशे में झूम रहा हूं।

मंहगे-सस्ते से तो साहब,कोसौं दूर हूं,
चाहत से अपनी मैं,बहुत मजबूर हूं।
किस्मत को अपनी मैं चूम रहा हूं,
मैं लाचारी के नशे में झूम रहा हूं।

दो वक्त की रोटी की तो, बस लत है हमें
हां शौक से अपने बहुत नफरत है हमें,
ख्वाईशों के बाजार में खाली घूम रहा हूं
मैं लाचारी के नशे में झूम रहा हूं।

कल की चिन्ता नही,आज की फिक्र है,
और कुछ नही सिर्फ पेट का जिक्र है,
आज का हो गया जुगाड कल का ढूँढ  रहा हूं,
मैं लाचारी के नशे में झूम रहा हूं।

©Anand Prakash Nautiyal #ख्वाहिश#लाचार#गरीब
ख्वाईशों के बाजार में, घूम रहा हूं,
मैं,लाचारी के नशे में झूम रहा हूं।

मंहगे-सस्ते से तो साहब,कोसौं दूर हूं,
चाहत से अपनी मैं,बहुत मजबूर हूं।
किस्मत को अपनी मैं चूम रहा हूं,
मैं लाचारी के नशे में झूम रहा हूं।

दो वक्त की रोटी की तो, बस लत है हमें
हां शौक से अपने बहुत नफरत है हमें,
ख्वाईशों के बाजार में खाली घूम रहा हूं
मैं लाचारी के नशे में झूम रहा हूं।

कल की चिन्ता नही,आज की फिक्र है,
और कुछ नही सिर्फ पेट का जिक्र है,
आज का हो गया जुगाड कल का ढूँढ  रहा हूं,
मैं लाचारी के नशे में झूम रहा हूं।

©Anand Prakash Nautiyal #ख्वाहिश#लाचार#गरीब