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पल्लव की डायरी गुल कोई कैसे खिलेगा बंदिशें आम हो र

पल्लव की डायरी
गुल कोई कैसे खिलेगा
बंदिशें आम हो रही है
फँसी है जिंदगी उल्फत में
कभी मेहरबान किस्मत होगी
अंदाज उनका भी 
चमन खिलाने के नही है
वरना दखल इस तरह नही होता
मसले को मजाक बना कर
जड़ो में जहर ना बोता
शौक है उसे हदे मिटाने का
मगर अपने जुल्म का इल्म ना होता
दुसरो को मिटाकर कोई 
अब तक खुदा नही बना है
खैर खबरऔर सलामती ना रखे
ऐसे मसीहा जन जन का राजा नही होता
                                             प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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