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हम रास्तों से पत्थर हटाते रहे सुन्नत रसुल को जगाते

हम रास्तों से पत्थर हटाते रहे
सुन्नत रसुल को जगाते रहे.
मुखातिब होना भी किसी से मुस्कुरा कर
सदका बताया रसूल ने.
तोड़ दिया ये सब आपसी मोहब्बते 
इस दुनिया की नफरत भरी वसूल ने, हुज़ूर न होते तो कुछ भी न होता,
हम रास्तों से पत्थर हटाते रहे
सुन्नत रसुल को जगाते रहे.
मुखातिब होना भी किसी से मुस्कुरा कर
सदका बताया रसूल ने.
तोड़ दिया ये सब आपसी मोहब्बते 
इस दुनिया की नफरत भरी वसूल ने, हुज़ूर न होते तो कुछ भी न होता,

हुज़ूर न होते तो कुछ भी न होता,