ज़रा उधार रखना ये बेबसी दिल की, आलम ये जुदाई का बस होने को है रोके रखना अब जज़्बात अपने दिल में, आगाज़ मोहब्बत का बस होने को है बांधे रखना शब्दों को नज़्मों में कहीं, दास्ताँ-ए-इश्क़ बयान बस होने को है नज़रों में रहने देना अक़्स मासूमियत का, गुनाह अब होंठों से कुछ होने को है हर साँस में भरना ये एहसास हमारा, कि हिज्र की शाम अब होने को है #हिज्र #जुदाई #मोहब्बत #yqdidi #yqbaba #drgpoems