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“बचपन में” जब धागों के बीच माचिस की डिब्बी को फँसा

“बचपन में” जब धागों के बीच माचिस की डिब्बी को फँसाकर फोन-फोन खेलते थे,
तो मालूम नहीं था एक दिन इस फोन में ज़िंदगी सिमटती चली जायेगी।। “#बचपन में” जब धागों के बीच #माचिस की डिब्बी को फँसाकर फोन-फोन खेलते थे,
तो मालूम नहीं था एक दिन इस #फोन में ज़िंदगी सिमटती चली जायेगी।।
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तो मालूम नहीं था एक दिन इस #फोन में ज़िंदगी सिमटती चली जायेगी।।
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Mukesh Poonia

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