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खिड़की से झांकता हूँ मै, सबसे नज़र बचा कर बेचैन हो

खिड़की से झांकता हूँ मै, सबसे नज़र बचा कर
बेचैन हो रहा हूँ, क्यों घर की छत पे आ कर
क्या ढूँढता हूँ, जाने क्या चीज खो गई है,
इन्सान हूँ, शायद मोहब्बत हमको भी हो गई।

©Shams Alam Siddiqui
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