घुंघट में रहने वाली नारी आस्मान में अपनी उडा न भर रही है इस कलयुग में सडकों पर चलने से डर लगता है अंधेरी रातों मे किसी माँ बाप आँगन की फूल जैसी बेटी को नोचां है रौंदा है कुचला है सडकों पर फैंका है चिखती चिल्ला ती रही पर किसी ने न सुनी न असर हुआ उन हैवानो पर जरा भी जब वो सिसकियाँ भर रहीं थीं मायुसी छायी थीं जो इंसान न बन पायें नारी की अस्मिता को लुटकर ©Anita Najrubhai #adishakti #नारी की अस्मिता को लुटकर