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कभी मैंने भी तो किसी के सामने दिल अपना खोल कर रखा

कभी मैंने भी तो किसी के सामने 
दिल अपना खोल कर रखा था ।
किन सवालों से,किस अज़िय्यत से गुज़र रही थी मैं 
ये लफ़्ज़-ब-लफ़्ज़ कहा था।

लेकिन मेरे किसी लफ़्ज़ का उस शख़्स पर असर हुआ नहीं 
मेरे किसी दर्द,किसी तकलीफ़ ने उसके दिल को छुआ नहीं।

इंतज़ार मैंने बहुत किया लेकिन 
उसने सब कुछ समझ कर नज़र-अंदाज़ कर दिया।
उसने बस उतना समझा जितना उसके लिए ज़रूरी था,
बाक़ी मेरी हर बात को शायद फ़िज़ूल समझ कर छोड़ दिया।

इस मस'अले का कोई हल निकले ये उसके लिए शायद ज़रूरी नहीं था 
क्यूॅ़कि उसके हिसाब से तो सब कुछ हमेशा ही सही था।

लेकिन सवाल मेरे थे, उलझने भी तो सिर्फ़ मेरी ही थीं,
इसलिए इस सब का हल हो जाना भी शायद सिर्फ़ मेरे लिए ही ज़रूरी था।
फ़िर मैंने ख़ुद ही हल निकाल लिया अपने हिसाब से अपनी उलझनों का
मस'अला सिर्फ़ मेरा ही था अगर तो किसी और से उम्मीद रखना भी सही नहीं था।

#bas yunhi ek khayaal .......

©Sh@kila Niy@z #basekkhayaal #basyunhi 
#Dil #rishte  #ehsaas 
#uljhane  #Problems 
#nojotohindi 
#Quotes 
#29Jan
कभी मैंने भी तो किसी के सामने 
दिल अपना खोल कर रखा था ।
किन सवालों से,किस अज़िय्यत से गुज़र रही थी मैं 
ये लफ़्ज़-ब-लफ़्ज़ कहा था।

लेकिन मेरे किसी लफ़्ज़ का उस शख़्स पर असर हुआ नहीं 
मेरे किसी दर्द,किसी तकलीफ़ ने उसके दिल को छुआ नहीं।

इंतज़ार मैंने बहुत किया लेकिन 
उसने सब कुछ समझ कर नज़र-अंदाज़ कर दिया।
उसने बस उतना समझा जितना उसके लिए ज़रूरी था,
बाक़ी मेरी हर बात को शायद फ़िज़ूल समझ कर छोड़ दिया।

इस मस'अले का कोई हल निकले ये उसके लिए शायद ज़रूरी नहीं था 
क्यूॅ़कि उसके हिसाब से तो सब कुछ हमेशा ही सही था।

लेकिन सवाल मेरे थे, उलझने भी तो सिर्फ़ मेरी ही थीं,
इसलिए इस सब का हल हो जाना भी शायद सिर्फ़ मेरे लिए ही ज़रूरी था।
फ़िर मैंने ख़ुद ही हल निकाल लिया अपने हिसाब से अपनी उलझनों का
मस'अला सिर्फ़ मेरा ही था अगर तो किसी और से उम्मीद रखना भी सही नहीं था।

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