न कोई शर्त, न कोई शिकन लफ़्ज़ों से परे, ख़ामोशी से हो ज़िक्र आंखों से झलके, मन से हो फ़िक्र रब की इबादत सी होती है ऐसी ही तो होती है, ऐसी ही तो मोहब्बत होती है। न कोई शर्त, न कोई शिकन लफ़्ज़ों से परे, ख़ामोशी से हो ज़िक्र आंखों से झलके, मन से हो फ़िक्र रब की इबादत सी होती है ऐसी ही तो होती है, ऐसी ही तो मोहब्बत होती है। #palsi