लिखूँ जो ख़त तुझे हाल-ए-दिल अपना लिख दूँ। खुद को लिखूँ मैं तरसती निगाह तुझे हसीं ख़्वाब लिख दूँ। लफ़्ज़ों के मोतियों को पिरोकर कर लिख दूँ बेचैनियाँ, माला नज़्म की बनाऊँ तेरे नाम की पैग़ाम लिख दूँ। पूछकर तुझसे वक़्त तेरे लौट आने का ज़िंदगी मे, वो दिन, वो लम्हा, वो साँस अपने खुदा के नाम लिख दूँ। तड़प मोहब्बत की लिखूँ या बयां करूँ जुदाई का गम, अश्क़ों सी भीगी हुई स्याही से तुमपर इल्जाम लिख दूँ। था जो तेरा वादा उम्र भर मेरे साथ चलने का सफ़र में, छोड़ कर जाने की तदबीर को तेरा इन्तकाम लिख दूँ। फासला था चंद कदमों का इंतजार सदियों पुराना हो गया, तेरे एहसास के साथ ज़िंदगी का आखिरी अंजाम लिख दूँ। कर दूँ तेरे हवाले अपनी ज़िंदगी के तमाम क़र्ज़ इश्क़ के, वसीयत में अपनी तेरे जीने का पूरा इंतजाम लिख दूँ। ♥️ Challenge-995 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।