एक दबी हुई सी सिसकती चीख है कदमों से दूर खिसकती दहलीज़ है इस अफ़रा तफ़री में उसका आँचल खिंच रहा है इस उहापोह में उस का दम घुट रहा है बेपरवाह दुनिया ने उसकी दरकार अनसुनी कर दी उड़ते कहकहों ने उसकी इल्तिजा बेमानी कर दी फिर इल्म के दरवाज़े बंद हो गए फिर से ज़ुल्म के हाकिम हावी हो गए संगदिल ज़माने ने तवारीख़ों में झांका मखौल बना कर उन का मोल आंका हैवानियत एक बार फिर जीत गई इंसानियत एक बार फिर बेगैरत हो गई उम्मीद है किसी फ़रिश्ते का पैग़ाम आए दुआ है किसी मज़लूम पर ना इल्ज़ाम आए ©Akshita Maurya #ilzaam