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एक दबी हुई सी सिसकती चीख है कदमों से दूर खिसकती दह

एक दबी हुई सी सिसकती चीख है
कदमों से दूर खिसकती दहलीज़ है

इस अफ़रा तफ़री में उसका आँचल खिंच रहा है
इस उहापोह में उस का दम घुट रहा है

बेपरवाह दुनिया ने उसकी दरकार अनसुनी कर दी
उड़ते कहकहों ने उसकी इल्तिजा बेमानी कर दी

फिर इल्म के दरवाज़े बंद हो गए
फिर से ज़ुल्म के हाकिम हावी हो गए

संगदिल ज़माने ने तवारीख़ों में झांका
मखौल बना कर उन का मोल आंका

हैवानियत एक बार फिर जीत गई
इंसानियत एक बार फिर बेगैरत हो गई

उम्मीद है किसी फ़रिश्ते का पैग़ाम आए
दुआ है किसी मज़लूम पर ना इल्ज़ाम आए

©Akshita Maurya #ilzaam
एक दबी हुई सी सिसकती चीख है
कदमों से दूर खिसकती दहलीज़ है

इस अफ़रा तफ़री में उसका आँचल खिंच रहा है
इस उहापोह में उस का दम घुट रहा है

बेपरवाह दुनिया ने उसकी दरकार अनसुनी कर दी
उड़ते कहकहों ने उसकी इल्तिजा बेमानी कर दी

फिर इल्म के दरवाज़े बंद हो गए
फिर से ज़ुल्म के हाकिम हावी हो गए

संगदिल ज़माने ने तवारीख़ों में झांका
मखौल बना कर उन का मोल आंका

हैवानियत एक बार फिर जीत गई
इंसानियत एक बार फिर बेगैरत हो गई

उम्मीद है किसी फ़रिश्ते का पैग़ाम आए
दुआ है किसी मज़लूम पर ना इल्ज़ाम आए

©Akshita Maurya #ilzaam