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धर्म की वास्तविकता का मर्म अनेका अनेक लोक परिषद उध

धर्म की वास्तविकता का मर्म अनेका अनेक लोक परिषद उधम प्रयास और अभ्यास छोड़कर जीवन में चमत्कार की आशा कर बैठते हैं खासकर अत्याधिक में क्षेत्र में ज्यादा धार्मिक कार्य का यज्ञ अनुष्ठान इसलिए करते दिखाई देते हैं कि इसके करते ही कोई अदृश्य 57 की अभिलाषा ओं की पूर्ति कर देगी ढेरों लोग इसी आशा में निकली हुई सुधारी महात्माओं के पास तक चले जाते हैं पर जब ऐसा कुछ नहीं होता तो मन निराश होता है और धर्म पर से उनका विश्वास उठने लगता है असंतुलन होकर धर्म स्थानों के प्रति अनाप-शनाप पर ले करने लगते हो देखने में आता है कि बहुत तरह साधु संत का भेष बनाकर लोगों की इस कमजोरी का दुखद स्थिति तक दोहन और शोषण करते हैं जबकि किसी उपलब्धि या प्राप्ति के लिए आने का एक ग्रंथ महापुरूषों से प्रेरणा लेकर सुनियोजित प्रयास और परिश्रम करना चाहिए इसका मतलब यह नहीं है कि धार्मिक अनुष्ठान ना किया जाए दरअसल इससे हमें अच्छे संस्कार अच्छा परिवार से मिलता है हमारा मजबूत आदमी बल बनता है इस तरह यह हमारे जीवन डगर को सुगम बनाती है अच्छे साधु संत कवि चमत्कार की आशा नहीं जानते किसी साधु संत से मिलते हैं यदि लोग की जादुई ढंग से उस सफलता की मंजिल पर पहुंचना है पल भर में सब कुछ भगवान से दिला देने का आश्वासन दे रहा है तो सतर्क हो जाने की जरूरत है कि वह किसी ठग तो नहीं रहा यदि चमत्कार से सब कुछ मिल जाता तो साधु महात्मा को हासिल कर लेते ध्यान रहे कि भगवान राम ने अयोध्या की भौतिक सुख को छोड़ दिया था उनके 14 वर्ष के इतिहास पूर्ण जीवन को सब जानते हैं बल्कि हजारों औरतों ने अयोध्या में राज किया उसमें लोग नहीं जानते इसी तरह गौतम बुद्ध से लेकर विवेकानंद महात्मा गांधी तक त्याग के कारण जाने जाते हैं ना कि चमत्कार के इसलिए धर्म के पद पर चमत्कारी ढंग से कुछ हासिल करने की जरूरत नहीं है

©Ek villain #Daram 

#peace
धर्म की वास्तविकता का मर्म अनेका अनेक लोक परिषद उधम प्रयास और अभ्यास छोड़कर जीवन में चमत्कार की आशा कर बैठते हैं खासकर अत्याधिक में क्षेत्र में ज्यादा धार्मिक कार्य का यज्ञ अनुष्ठान इसलिए करते दिखाई देते हैं कि इसके करते ही कोई अदृश्य 57 की अभिलाषा ओं की पूर्ति कर देगी ढेरों लोग इसी आशा में निकली हुई सुधारी महात्माओं के पास तक चले जाते हैं पर जब ऐसा कुछ नहीं होता तो मन निराश होता है और धर्म पर से उनका विश्वास उठने लगता है असंतुलन होकर धर्म स्थानों के प्रति अनाप-शनाप पर ले करने लगते हो देखने में आता है कि बहुत तरह साधु संत का भेष बनाकर लोगों की इस कमजोरी का दुखद स्थिति तक दोहन और शोषण करते हैं जबकि किसी उपलब्धि या प्राप्ति के लिए आने का एक ग्रंथ महापुरूषों से प्रेरणा लेकर सुनियोजित प्रयास और परिश्रम करना चाहिए इसका मतलब यह नहीं है कि धार्मिक अनुष्ठान ना किया जाए दरअसल इससे हमें अच्छे संस्कार अच्छा परिवार से मिलता है हमारा मजबूत आदमी बल बनता है इस तरह यह हमारे जीवन डगर को सुगम बनाती है अच्छे साधु संत कवि चमत्कार की आशा नहीं जानते किसी साधु संत से मिलते हैं यदि लोग की जादुई ढंग से उस सफलता की मंजिल पर पहुंचना है पल भर में सब कुछ भगवान से दिला देने का आश्वासन दे रहा है तो सतर्क हो जाने की जरूरत है कि वह किसी ठग तो नहीं रहा यदि चमत्कार से सब कुछ मिल जाता तो साधु महात्मा को हासिल कर लेते ध्यान रहे कि भगवान राम ने अयोध्या की भौतिक सुख को छोड़ दिया था उनके 14 वर्ष के इतिहास पूर्ण जीवन को सब जानते हैं बल्कि हजारों औरतों ने अयोध्या में राज किया उसमें लोग नहीं जानते इसी तरह गौतम बुद्ध से लेकर विवेकानंद महात्मा गांधी तक त्याग के कारण जाने जाते हैं ना कि चमत्कार के इसलिए धर्म के पद पर चमत्कारी ढंग से कुछ हासिल करने की जरूरत नहीं है

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