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लाखों ठोकरों के बाद भी संभलता रहूंगा मैं कभी तो मि

लाखों ठोकरों के बाद भी संभलता रहूंगा मैं कभी तो मिलेगी मेरी भी मंजिल गिरकर फिर उठूंगा और चलता रहूंगा मैं sokoon ae zindagi  mujeeb rehman hyaat
लाखों ठोकरों के बाद भी संभलता रहूंगा मैं कभी तो मिलेगी मेरी भी मंजिल गिरकर फिर उठूंगा और चलता रहूंगा मैं sokoon ae zindagi  mujeeb rehman hyaat