बरेली यात्रा वृतांत....💕👨😂💕 : : : (यूपी दर्शन)----- 2 😂😂💕👉🍧 कट्टरपंथ ! एक नया अनुभव...... 💕👨😂😂😂 : देहली से बरेली जाते समय संयोग रहा कि बगल की सीटों पर तीन चार मुस्लिम हमसफर मिल गये। खूब सारी प्रेमपूर्वक बातों मुलाकातों और हंसी ठहाकों के बीच रास्ता कटा। ईद मनाने घर लौट रहे थे सभी मित्रों को हमने भी शुभकामनाएं दीं। जब तक मजहब बीच में न आये, दोस्ती खूब अच्छे से चलती है मगर जब आचार विचारों में ठीक विरोधाभास हो तो कहीं न कहीं टकराव हो ही जाता है। मेरी भी चप्पल नीचे रखी थी और एक मुस्लिम की भी। पूरे रास्ते वो मेरी चप्पलों को यूज करते रहे। मगर एक बार संयोग से मेरी चप्पल उन्ही का साथी पहन कर टायलेट चला गया। बहुत देर तक नहीं आया। मुझे भी टायलेट जाना था। मित्रता का तकाजा था कि बिना पूछे ही साथी की चप्पल पहन कर टायलेट जाने लगा मगर उसने मुझे टोक दिया। "भाई ये चप्पल रहने दीजिये। अपनी आ जाने दो। इस पर छींट पड जायेंगी।" दोस्ती के बीच मजहब आ चुका था। छींट का इलाज तो ये भी है कि पानी से पैर धोकर आओ मगर बात मजहबी किताब की है, जितना लिखा है उतना ही करना है, न उससे ज्यादा और न उससे कम। :😂😂😂😂😂💕🍧👨 बडे बडे पदों पर विराजमान बडी बडी डिग्रीधारी भी मजहबी बीमारी से गृसित नजर आते हैं। जब तक मजहब आडे नहीं आये, इनसे बढिया व्यवहारकुशल इंसान कोई नहीं और मजहबी कीडा कुलबुलाने के बाद इनसे बडा हैवान कोई नहीं। खाने पीने काटने पहनने बोलने आदि सभी में विपरीत दिशा पकडी है तो मेल हो भी कैसे पायेगा?