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शून्य उपज थी शून्य पल्लवन, शून्य ही जगमग ओत-प्रोत

शून्य उपज थी शून्य पल्लवन,
शून्य ही जगमग ओत-प्रोत ।
शून्य ही पावन शून्य ही छावन,
शून्य में लौटी शून्य स्त्रोत ।।
शून्य ही स्थावर शून्य ही जंगम,
शून्य ही सुक्षम प्रण भनन्त ।
शून्य ही धावन शून्य ही प्लावन,
शून्य में बसती मैं अनन्त ।। "देवी की अनन्तता"
शून्य ही अनन्त है, इसी तत्त्व को दर्शाने वाली एक मधुर कविता...

पता नहीं शब्दों के माध्यम से ये कैसी डोर बंधी हुई है... Such transparency of thoughts which lighten up the dark chambers of the hearts merely by virtue of its presence...

अह... इतनी जल्दी शब्दहीनता आ गयी... 

Much Love..
शून्य उपज थी शून्य पल्लवन,
शून्य ही जगमग ओत-प्रोत ।
शून्य ही पावन शून्य ही छावन,
शून्य में लौटी शून्य स्त्रोत ।।
शून्य ही स्थावर शून्य ही जंगम,
शून्य ही सुक्षम प्रण भनन्त ।
शून्य ही धावन शून्य ही प्लावन,
शून्य में बसती मैं अनन्त ।। "देवी की अनन्तता"
शून्य ही अनन्त है, इसी तत्त्व को दर्शाने वाली एक मधुर कविता...

पता नहीं शब्दों के माध्यम से ये कैसी डोर बंधी हुई है... Such transparency of thoughts which lighten up the dark chambers of the hearts merely by virtue of its presence...

अह... इतनी जल्दी शब्दहीनता आ गयी... 

Much Love..