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आज़ के दौर में तकनीकी के बदलते रूप में हम, इस प्रकृ

आज़ के दौर में तकनीकी के बदलते रूप में हम,
इस प्रकृति की नायाब चीज़ खोते जा रहे हैं,
जो  हमारे  जीने  का एकमात्र ज़रिया हैं,
जी हाँ......मैं पेड़ की बात कर रहा हूँ ।

हमारे ज़ीवन में पेड़ के महत्व को मैंने
अपने शब्दों में इस कविता में उकेरा हैं..... पेड़:- मुझें ख़त्म किए जा रहें हो...? 

मानता  हूँ  मै,  ताकत  है  तुझमें
तभी तो तुम, मुझें ख़त्म किए जा रहे हो ।

तुम्हारा आज़ औऱ कल मुझसे ही हैं,
हर  रस्म-रिवाज़  मेरे  बिन  अधूरे  हैं,
फ़िर भी तुम, मुझें ख़त्म किए जा रहे हो ।
आज़ के दौर में तकनीकी के बदलते रूप में हम,
इस प्रकृति की नायाब चीज़ खोते जा रहे हैं,
जो  हमारे  जीने  का एकमात्र ज़रिया हैं,
जी हाँ......मैं पेड़ की बात कर रहा हूँ ।

हमारे ज़ीवन में पेड़ के महत्व को मैंने
अपने शब्दों में इस कविता में उकेरा हैं..... पेड़:- मुझें ख़त्म किए जा रहें हो...? 

मानता  हूँ  मै,  ताकत  है  तुझमें
तभी तो तुम, मुझें ख़त्म किए जा रहे हो ।

तुम्हारा आज़ औऱ कल मुझसे ही हैं,
हर  रस्म-रिवाज़  मेरे  बिन  अधूरे  हैं,
फ़िर भी तुम, मुझें ख़त्म किए जा रहे हो ।