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घर द्वार हैं सूने पड़े अब, कारखानों में भीड़ जारी है

घर द्वार हैं सूने पड़े अब, कारखानों में भीड़ जारी है
ममता के अनुबंधों पर हमारी भौतिकता हमपर भारी है
एक वक्त था जब बच्चों के कलरव से
घर के आंगन चहका करते थे
अम्माँ की रसोई में न जाने कितने
पकवान महका करते थे
अब रसोई बन गयी खाली किचेन ,और बाजारों में भीड़ भारी है
घर द्वार हैं सूने..................................  ..........…
घर के आंगन किलकारी को तरसे
घर की रौनकें "डे केयरों" में पली हैं     
वे संस्कारों का "स" कैसे समझें 
जब सामाजिक सम्बन्धों की बड़ी कमी है
घर का बूढा बरगद  भी बोले वो बाबा दादी की कहानी  कहाँ रही हैं 
घर द्वार हैं सूने पड़े.........................................
अभावों से त्रस्त अंतर्मन 
जब आवश्यकताओं से जूझ रहा था
आर्थिक आजादी को तृषित स्त्रिमन 
परिवर्तन को चाह रहा था
नारी सशक्तीकरण को लालायीत नादाँ नारी न समझी
की इसमें पुरुषों की चाल सारी है
घर द्वार हैं सूने .............................
नारी के दायित्वों की सूची अब 
देखो कितनी निराली है
बाहर घिसती, घर मे पिटती
इसीलिए बाजारों में मेकअप किट की मांग भारी है
क्या हो नारी सशक्तिकरण का सही स्वरूप अब ये विचारना हमारी जिम्मेदारी है
घर आंगन है सूने ...........................................
.........प्रियंका श्रीवास्तव

©Priyanka shrivastava
  #MothersDay  बचपन पर भारी नारी सशक्तिकरण

#MothersDay बचपन पर भारी नारी सशक्तिकरण

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