मौसम-ए-बरसात में इश्क़-ए-जुनूँ चाहता है, दिल का क्या क़ुसूर इश्क़-ए-फ़ितूर चाहता है। बे दर्द दुनिया में वफ़ा के चंद लम्हें चाहता है, दिल का क्या क़ुसूर निस्बत-ए-इश्क़ चाहता है। महबूब से मुलाक़ात के लिए हर पल तरसता है, दिल का क्या क़ुसूर ग़म-ए-जुदाई में तड़पता है। बेखुदी के लम्हों में सौगात-ए-इश्क़ चाहता है, दिल का क्या क़ुसूर रहमत-ए-ख़ुदा चाहता है। दिल का क्या क़ुसूर जो तुमसे तवज्जो चाहता है, अपने मुकद्दर में लिखना तुम्हारा नाम चाहता है। जो ना कभी मिट पाए ऐसी मोहब्बत चाहता है, महरूम मोहब्बत को देना एक नाम चाहता है। ♥️ Challenge-991 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।