Unsplash मेरे किस्से जो कभी कहानी बन न पाए सबको खुश करने मे रहे,खुद को खुश कर न पाए दर्द सहते-सहते बड़े हुए थे हम मगर, उसके दिए दर्द को हम सह न पाए छोड़ कर जाने से पहले ही छोड़ चुके थे सब पहले भी अकेले थे हम,मगर अब अकेले रह न पाए ठहर गए थे उनके साथ जीवन भर चलने को विसर्जन किया उसने मेरा मगर हम नदियों मे बह न पाए नीलेश सिंह पटना विश्वविद्यालय ©Nilesh #MeriKahani