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रात मायूस बैठी थी चौखट पर मेरी कैसे समझाऊं उसको ब

रात मायूस बैठी थी 
चौखट पर मेरी
कैसे समझाऊं उसको
बाशिंदा हूं शहर तेरे में
मुझे आती नहीं भाषा तेरी

तू कहे तो कोई अपना किस्सा सुना दूं
मेरे शहर की कोई पुरानी बात बता दूं

आ जरा क़रीब आ
यूं इस कदर मत शर्मा

ये क्या है जो हमें जोड़ रहा है
है क्या गम जो तुम्हें भीतर से तोड़ रहा है

तू सांझ ढले आ जाया कर
हमारी बातें किसी को मत बताया कर 

वो जिन्हें तू अपना मानता है
ये बता उनको भला कितना जानता है

©Manish Sarita(माँ )Kumar
  दरवाज़ा






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