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ये जो मेरे लिबास से, तु मेरा चरित्र खंगालता है जबर

ये जो मेरे लिबास से, तु मेरा चरित्र खंगालता है
जबरदस्ती से मुझसे , हेजाब डलवाता है
फिर कभी सहूलियत के हिसाब से, इन्हें (लिबास)उतारता है
और फिर कभी सरेआम हुजूम में , मुझे तार-तार कर जाता है
तेरी हैवानियत का मैं गुलाम तो नहीं 
तेरी हवश का मैं शिकार भी नहीं 
तेरे स्वाभिमान को बचाना आता है मुझे 
पर मेरे असि्तत्व का तुझे एहसास ही नहीं

ये जो मेरे लिबास से, तु मेरा चरित्र खंगालता है जबरदस्ती से मुझसे , हेजाब डलवाता है फिर कभी सहूलियत के हिसाब से, इन्हें (लिबास)उतारता है और फिर कभी सरेआम हुजूम में , मुझे तार-तार कर जाता है तेरी हैवानियत का मैं गुलाम तो नहीं तेरी हवश का मैं शिकार भी नहीं तेरे स्वाभिमान को बचाना आता है मुझे पर मेरे असि्तत्व का तुझे एहसास ही नहीं

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