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कभी ख़ार सी चुभे है कभी धूप सी उबले है कभी रेशम सी

 कभी ख़ार सी चुभे है
कभी धूप सी उबले है
कभी रेशम सी भी तो बनकर
लिपट तू मुझसे ए ज़िन्दगी Revisited
 कभी ख़ार सी चुभे है
कभी धूप सी उबले है
कभी रेशम सी भी तो बनकर
लिपट तू मुझसे ए ज़िन्दगी Revisited