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गिरना सिखा था बचपन में, अब तो नजरों से गिर रहा हू

गिरना सिखा था बचपन में, 
अब तो नजरों से गिर रहा हूँ। 
अपने इश्क़ की राहो पर, 
खुद मुसाफिरों सा फिर रहा हु।
वफ़ा को छोड़कर इश्क़ में, 
गुनाह मैंने तमाम किया। 
खुद बेईमान बन चुका था , 
और इश्क़ को बदनाम किया। 
जखम ताजे होते तो भर जाते, 
घाव अब सड़ चुके है।
तुम कितना भी संभालो
दिल पत्थर हो गया 
जज्बात मर चुके है।
हालात मे सुधार हो सकता था
पर अब बिगड़ चुके है। 
हम वो बचे हि नही जो पहले थे, 
पहले तुमपे मरते थे अब पूरे मर चुके है।

©Vijay Sonwane
  baat itni bigad gayi ki........

baat itni bigad gayi ki........ #SAD

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