तोहमतें वो जमाने भर की हम पे लगाते हैं ये बात और है कि बस हम पे ही लगाते हैं राहे वफ़ा में उनका भी हिसाब ठीक नही छोड़ने की बात करते हैं साथ चले आते हैं सामने तो चुक जाती है ताक़त बदन की गैरहाज़िरी में वल्लाह क्या आग लगाते हैं घर ही आ जाते हैं क़ायनात तफ़रीह करके हम भी तो उन्हें गोल है दुनिया ही बताते हैं खामोश रहते हैं आजकल मन नही लगता धीर उदास है अब वो थोड़ा कम सताते हैं तोहमतें