किनारे से देखी थी जो किश्ती , वो धुँआ निकली बांधी थी जो पाजेब तेरे पैरों में , वो सजा निकली सांसो ने माँगी थी बस कुछ दिन की महुलत मगर तेरे बाजार में सबसे मंहगी उसकी दवा निकली जो मारना ही था अगर , तो आसान था छुरा घोपना मगर तेरी तरकीब जमाने से जुदा निकली "जयंत मेहरा" #तरकीब_जमाने से जुदा निकली