कोई सहरा में एक बूँद ढूँढता है, कहीं सागर भी प्यासा रहता है| कहीं चार लम्हें जिंदिगी बन जाते हैं, कहीं कोई पल पल मरता है| कहीं सागर भी प्यासा रहता है… कभी अश्क पीता है छलकने से पहले, कभी खामोश तन्हा सिसकता है| कहीं सागर भी प्यासा रहता है… कहीं लफ्ज़ कह नहीं पाते हैं खलिश, कहीं कोई आँखों से ही सब कहता है| कहीं सागर भी प्यासा रहता है… कहीं किस्मत को इलज़ाम मिलते हैं ‘अंकुर’, कहीं कोई लहरों सा बहता है| कहीं सागर भी प्यासा रहता है.. #कहीं #सागर #भी #प्यासा #रहता #है… कोई सहरा में एक बूँद ढूँढता है, कहीं सागर भी प्यासा रहता है| कहीं चार लम्हें जिंदिगी बन जाते हैं, कहीं कोई पल पल मरता है| कहीं सागर भी प्यासा रहता है…