थोड़ा सा डरते हैं हम,इश्क निभाना नहीं आता।। जरा दिल से पूछे कोई, कौन सा तराना नहीं आता।। रोग जब दिल को लग जाता है ऐ दोस्त, कमबख्त साथ निभाने, ये जमाना नहीं आता।। ठुकरा देना ही वाजिब समझता है, दिल मेरा, बार-बार हमें करने , ये बहाना नहीं आता।। आपकी बातें दिल को छू कर निकल गई, वरना,इश्क की गली में दीवाना नहीं आता।। मुंह फेर लेते हैं कुछ लोग,इश्क में इस कदर, हर किसी को इश्क में मुस्कुराना नहीं आता।। इश्क के दो चार घूंट हमने भी पी रखी है, नहीं तो मोहब्बत के नगमे गुनगुनाना नहीं आता।।