क्या कहें हम इसे मोम समझा जिसे वो भी निकला है पत्थर की चट्टान सा जो भी अपना दिखा जैसे सपना दिखा रूठ कर चल दिया घर से महमान सा आज फिर भूल से एक गलती हुई कांच के फ्रेम में एक पत्थर जड़ा एक दरिया समझ पास जिसके गया था वहाँ आंसुओ का समंदर बड़ा द्वार पर जिसके गमले सजे फूल के था उसी घर में जंगल भी सुनसांन सा कभी कभी जाने अनजाने में क़ुसूर हो ही जाता है दिल पलभर ख़ुश तो होता है पर रो भी जाता है मोहब्बत में मुमकिन हो मज़ाक कम ही करो कभी कभी इक छोटी चुभन से नासूर हो ही जाता है । 💮🍁🍁🌲🌲☕☕🌲🌲🍁💮 #पंछी #पाठक #प्यार