हर दिल पर राज हो,ये सोचकर तहरीरों को बदलना पड़ता है । रोज नये शेर, नयी गजलों के साथ ढलना पड़ता है । अपना वजूद बचाने की खातिर हम सुखनवरो को । आफताब की तरह हर रोज़ निकलना पड़ता है । azeem khan # हर रोज़ निकलना पड़ता है #