तुम्हारी आंखें जिनमें शर्म हया की है बरसाते छुपाती हमेशा स्त्री अपनी दिल की बातें टूट ना जाए कहीं कोई रिश्ते....इसलिए पलकों को रखती है हमेशा झुका के।। तुम्हारी आंखें