रोते हुए क़दम रखा था… अजीब से डर के साथ, कंधे पर एक बोझ लटका था… और गले मे पानी से भरा हार। आज सब कुछ खो सा गया… बस वो आँसु और वो डर यहीं रह गया, आख़िर ये जगह ऐसी थी ये तो मेरे घर से भी अच्छी थी। हाँ!! अब आँसु और इस डर की वजह बदल गई, पहले यहाँ आने के नाम से रोते थे…… अब वापस न जाने का बहाना ढूंढते, पहले ' ये दोस्त कैसे होंगे' इससे डर लगता…… अब तो इनके लिए जान देते। ये जगह यादों का पिटारा था, हँसना-रोना,नाचना-गाना, खेलना-कूदना… सब यहीं से तो सीखा था ये मेरा school नहीं… मेरा घर था!!! Pencil का pen मैं बदलना… प्यारे शब्दों को छोड़ ग़ालियो का ज़ुबान पर आना, Monitor से डरने से लेकर… Teacher को ignore करने तक का सफ़र, कब खत्म होने पर आ गया , पता ही नहीं चला। ये मेरा school नहीं… मेरा घर था!!! (Part–1) To be countinued…… School life… (part -1) Please comment and check other parts of school life too