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बह रही है ये हवा, जहर अपने साथ लेकर छन सके कतरा-कत

बह रही है ये हवा,
जहर अपने साथ लेकर
छन सके कतरा-कतरा,
ऐसा एक औजार दे दो
मन समंदर सा बना है,
शांत भी और चुप भी हूं
चांद बन कुर आ भी जाओ,
और मुझमें ज्वार भर दो
शहर का जहर बहे नदी में
गंध में घुल कर कभी
मन में छठ माई विराजो,
सिर पर सूप सवार कर दो
'संजीव झा'

©Sanjeev Jha
  #छठ