हाँ स्त्री हो तुम ,सुबह की पवन हो तुम रात की तुम रेत हो, इतनी शीतल हो तुम हाँ जीवन उपहार हो ,जन्म देती हो तो माँ हो तुम जन्म लेती हो तो हो तुम पुत्री ,कभी बहन तो कभी अर्धांगिनी कभी जीवन की रसधार हो तुम ,कितना सुंदर तुम्हे प्रकृति ने रचा हैं हाँ सच मे मायाजाल हो तुम इतने रिश्ते ना जाने कैसे ,तुम हमेशा निभाती गई तीव्र गर्मी की पीड़ा हो या ,बर्फीले मौसम की बारिश धर्म पथ पर चलती गई ,धर्म पथ पर चलती गई हाँ स्त्री हो तुम ,प्रकृति का उपहार हो तुम कभी सीता तो कभी राधा हो तुम कभी यशोधरा तो कभी कौशल्या हो तुम कभी झांसी की रानी लक्ष्मी हो तुम कभी नखकटिका कर्णावती हो तुम धर्म पथ पर चलते चलते, प्रकृति का उपहार हो तुम हाँ स्त्री हो तुम हर आँचल की कोख हो तुम हाँ स्त्री हो तुम उड़ चलो उन्मुक्त गगन मे तुम ,भर लो जीवन की ऊंची उड़ान तुम साक्षात देवी हो तुम,प्रकृति का उपहार हो तुम हाँ स्त्री हो तुम हर आँचल की कोख हो तुम हाँ स्त्री हो तुम ©Kamlesh Bohra Mahesh Shalivahanas Skumar gsss Sampat Mehta Waqar Ahmad