लम्हा- दर- लम्हा पुरानी, तो हर लम्हे संग खास होती जा रही कमबख्त मोहब्बत, मोहब्बत ना हुई , शराब होती जा रही है वैसे तो दूरी तुझसे , सिर्फ योजन की नहीं , विचारों की भी है फिर भी, जाने क्यों ये बेहिसाब होती जा रही है हर रात छलकती है, आंखो के पैमाने में और अश्क बन निकल आती है सिर्फ, इक मुलाकात में, जाने क्यों ये लाजवाब होती जा रही है #midnightpoem #आखिरी