कभी-कभी तोड़ कर जिम्मेदारियों का पिंजरा, जिंदगी की तरफ मुड़ने को जी चाहता है, कभी कभी उड़ने को जी चाहता है। दौड़–भाग भरी जिंदगी से परे हो कर, आज सुकून से ठहरने को जी चाहता है, कभी कभी उड़ने को जी चाहता है। दुख, तकलीफ, परेशानियां इन सबको भुलाकर, आज खुल के जीने को दिल चाहता है, कभी कभी उड़ने को जी चाहता है। . ©Vivek Singh #Twowords #तोड़ कर जिम्मेदारियों का #पिंजरा, #जिंदगी की तरफ मुड़ने को जी #चाहता है, कभी कभी उड़ने को जी चाहता है। दौड़–भाग भरी जिंदगी से परे हो कर, आज #सुकून से ठहरने को जी चाहता है, #कभी कभी उड़ने को जी चाहता है।