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मैदान ए जंग में उतरने लिये हौंसलों के साथ हथियार च

मैदान ए जंग में उतरने लिये हौंसलों के साथ हथियार चाहिये होते हैं लेकिन कठिन हालातों से लड़ने के लिये केवल हौंसला चाहिये हौंसला नहीं है आपके पास तो खुद पर यकीन रखें यकीन नहीं है तो शब्र रखें शब्र भी नहींं है तो आप उम्मीद तो कायम रख ही सकते हैं ये तो आपको करना ही पडे़गा और साथ में अपने चरित्र को और बेहतर बनाने में पूरी ताकत झोंक दें फिर आप आस्तिक हों या नास्तिक ईश्वर आपको रास्ता जरूर दिखायेगा क्यूंकि ईश्वर को अच्छे किरदार वाले लोग बेहद या यूं कह लो कि सर्वाधिक प्रिय हैं यह  एक तथ्य भर ही नहीं वरन् मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी है क्यूंकि मैं बहुत बुरा था खुद को अच्छा किया तो सबकुछ पहले से बहुत बेहतर होता जा रहा है

लेखक आयुष कुमार गौतम की डायरी से मैदान ए जंग
मैदान ए जंग में उतरने लिये हौंसलों के साथ हथियार चाहिये होते हैं लेकिन कठिन हालातों से लड़ने के लिये केवल हौंसला चाहिये हौंसला नहीं है आपके पास तो खुद पर यकीन रखें यकीन नहीं है तो शब्र रखें शब्र भी नहींं है तो आप उम्मीद तो कायम रख ही सकते हैं ये तो आपको करना ही पडे़गा और साथ में अपने चरित्र को और बेहतर बनाने में पूरी ताकत झोंक दें फिर आप आस्तिक हों या नास्तिक ईश्वर आपको रास्ता जरूर दिखायेगा क्यूंकि ईश्वर को अच्छे किरदार वाले लोग बेहद या यूं कह लो कि सर्वाधिक प्रिय हैं यह  एक तथ्य भर ही नहीं वरन् मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी है क्यूंकि मैं बहुत बुरा था खुद को अच्छा किया तो सबकुछ पहले से बहुत बेहतर होता जा रहा है

लेखक आयुष कुमार गौतम की डायरी से मैदान ए जंग