"कर्तव्यनिष्ठा'' शीर्षक पूरी कहानी नीचे पढ़े...... @Brijendra 'Bawra, #NojotoQuote #कर्तव्यनिष्ठा मेरे शेरो- शायरी और काव्य रचनाओं को मिले आप के अपार स्नेह की बदौलत आज हम आपके लिये प्रस्तुत कर रहे अपनी प्रथम गद्य-रचना शीर्षक है #कर्तव्यनिष्ठा यही तकरीबन आज से सात-आठ वर्ष पहले की बात है, पिताजी सुबह स्नान करते ही एक कागज़ात हमें दिये और बोले ये ले जाओ, इस पर मिश्रा जी से दस्तख़त करवाना है और खुद पूजा की थाल लेकर मंदिर की तरफ चले गये, मैं भी कागज समेटा और बाइक लेकर मिश्रा जी के घर की तरफ चल दिया, मिश्रा जी हमारे तहसील के अधिकारी थे और पिता जी के मित्र भी थे तो हमे पता था कि इनके दफ़्तर का समय तो हो गया है लेकिन साहब अभी घर पर ही मौजूद मिलेंगे , मैं घर पहुंचा दरवाज़े पर दस्तक़ देते हुये आवाज लगाया - चाचा जी, चाचा जी... थोड़ी देर में उनका बड़ा लड़का दरवाजा खोलते हुये बोला, भैया जी ! पापा दफ्तर के लिये निकल गये हैं ?? मैं कुछ बोलता कि इसके पहले मिश्रा जी पत्नी अरे बेटा! तुम अंदर आ जाओ ना! तुम्हारे चाचा जी तो अभी-अभी दफ़्तर के लिये निकल गये हैं , मैं भी चाची जी को प्रणाम किया और पापा घर इंतजार कर रहे हैं कह कर घर के लिए निकल पड़ा लेकिन एक बात मन मानने को तैयार नही हो रहा था कि मिश्रा जी अभी दफ्तर के लिये चले गये होंगे!!! खैर मैं घर पहुंचा और पापा जी को बताया कि मिश्रा जी मिले नहीं दफ्तर चले गये थे, पापा बोले- कोई बात नहीं कुछ काम रहा होगा जल्दी निकल गये होंगे, नहीं तो कल मैं दफ्तर में ही मिला था तो कहे थे कि सुबह किसी से कागज घर भिजवा देना दस्तख़त कर दूंगा!!! हाँ, कागज संभाल कर रख लो कल सुबह चले जाना, पापा बोलकर काम पर निकल गये।