गालिब कि नज्मे कहाँ करती सियासत, ना पन्त के भावो ने छेड़ा बगावत। कवि विपक्षी रहे शाश्वत राजनीती के, अभिसारिका से मग्न कविता मे। सच को उकरो कागज पर , शब्दो मे हो श्वास। निराला के वंशज, भारत कि प्रतिभा हो तुम, लिख नज्मे आवाज पिरो दो,छोड़ सियासत विश्वास।